धींगा गवर: संस्कृति या अराजकता ? महिलाओं का मेला हुआ मनचलों का अड्डा
बरसों पुरानी परम्परा अब भ्रामक प्रचार और अराजकता का शिकार, प्रशासन की भूमिका पर सवाल
क्या बचा पाएगी "धींगा गवर" की गरिमा ? महिला शक्ति
जोधपुर/राजस्थान। धींगा गवर मेला, जोधपुर के भीतरी शहर की सांस्कृतिक विरासत है जो सदियों से महिलाओं का एक अनूठा त्योहार रहा है। बरसों से महिलाएँ समूहों में निकलकर विभिन्न मोहल्लों में गवर माता के दर्शन करती हैं, परन्तु पिछले कुछ दशकों में भ्रामक प्रचार ने इस मेले की छवि को विकृत कर दिया है। इसे कथित रूप से "बेंतमार गणगौर" नाम देकर इस मस्ती और उल्लास से भरे मेले को अराजकता में बदल दिया गया है।
अराजकता का यह आरोप इसलिए है क्योंकि तीजणियां (गवर पूजन करने वाली महिलाएं) रात दस बजे गवरों (गणगौर माता) के दर्शनार्थ निकलती हैं। वे अलसुबह 4:00 बजे गवर माता को धामकना करती हैं, इसलिए रात भर जागती रहती हैं। जिसे (राती जोगा) कहते है। यह यात्रा मनोरंजन और माता के दर्शन का माध्यम है। उनके हाथ में जो छड़ी (बेंत) होती है, जो कि आत्मरक्षा का सूचक है, न कि कथित कुंवारों को मारने या शादी का शुभ संकेत देने का माध्यम।
यह मिथ्या प्रचार इतना घातक हो गया है कि शहर (जोधपुर) और आसपास के गाँवों से लोग मेले में हुड़दंग मचाने आते हैं। इससे छोटे-मोटे झगड़े होते हैं, मेले की व्यवस्था बाधित होती हैं और महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार की घटनाएँ भी सामने आती हैं। हालांकि, पिछले कुछ वर्षों से महिलाओं ने पुरुषों को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और सोशल मीडिया पर स्टेटस न लगाने की अपील की थी किसका कुछ हद तक सकारात्मक प्रभाव पड़ा।
परन्तु प्रशासन और पुलिस केवल गश्त पर ही ध्यान केंद्रित करते रहे। वे इस मेले की वास्तविकता से अनभिज्ञ थे, इसलिए पुलिस ने अधिक हस्तक्षेप नहीं किया। शाम सात बजे से रात दस बजे तक ऐसी महिलाएँ, जिनका गणगौर पूजन से कोई लेना-देना नहीं है, हाथ में बेंत और डंडे लेकर पुरुषों पर हमला करती हैं, जिससे कई बार गंभीर चोटें भी लगती हैं। ये मनचले भी होते हैं जो केवल फब्तियां कसने आते हैं जबकि विस्ताविक गवर पूजन करने वाली महिलाएँ रात दस बजे से पहले बाहर नहीं निकलती हैं।
जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन से अपील:जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन को इस मेले की मर्यादा बनाए रखने के लिए कड़े कदम उठाने चाहिए। पांच-छह दशक पहले पुरुष स्वेच्छा से अपने घरों में चले जाते थे। मोहल्लों की हथाइयों पर कुछ बुजुर्ग महिलाओं की सुरक्षा के लिए बैठते थे। परन्तु "बेंतमार गणगौर" नामकरण के बाद कई महिलाएँ डर से बाहर नहीं निकल पाती हैं।
प्रशासन को ये इंतज़ाम करने चाहिए:
* ट्रैफिक व्यवस्था और भीड़ को नियंत्रित करना।
* जालोरी गेट, हटडियों का चौक और आडा बाजार के मोड़ पर बेरिकेडिंग लगाकर पुरुषों का प्रवेश प्रतिबंधित करना।
* महिला और पुरुष सिपाहियों की तैनाती।
जिला-पुलिस प्रशासन से स्टेज की परमिशन नहीं देने का आग्रह"धींगा गवर माता" मेले में गवर माता विराजित होने के लिए केवल एक छोटा-सा स्टेज ही बनाया जाता हैं। जबकि पिछले कुछ दशकों से स्टेज व डीजे के रूप में चलाई गई परंपरा से ना केवल मेले की व्यवस्थाएं प्रभावित हो रही, बल्कि संकरी रोड़ व गलियों में स्टेज के आगे जाम लगने से भीड़ धक्का-मुक्की होने के कारण महिलाओं के साथ गलत हरकतें होने लगती हैं। ऐसे में जिला प्रशासन व पुलिस प्रशासन से भीतरी शहर के किसी भी क्षेत्र में स्टेज लगाने की परमिशन बिल्कुल नहीं देने का आग्रह हर शहरवासी कर रहा है क्योंकि ऐसी कोई पौराणिक परंपरा है ही नहीं। जहां नियम तोड़े जाते हो, वहां नियमनुसार उचित कार्रवाई की जाए।
धींगा गवर मेला हमारी संस्कृति का अंग है। इसकी रक्षा करना हम सबकी ज़िम्मेदारी है।
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